लेखनी कहानी -01-Feb-2024
दिनांक -०1-० 2- 2024 दिवस- गुरुवार विषय- अदम्य साहसी नारियांँ
युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान, राष्ट्रहित में की जो समर्पण , नत मस्तक है सारा जहान। प्रेरित, जागृत की वो सबको, मत उसको अबला लो जान। कोमलता को कमज़ोरी, अरे मूरख! तू मत मान । युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
ना प्रतिबंधित कर इसको, दीवार खड़ी ना कर। कृतघ्नता को तू न दिखा, ना अपयश को वर । इतिहास पर डाल ले दृष्टि, वैदिक काल से नारी महान। लोपामुद्रा, अनसूईया से, उस काल का था पहचान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
मेगस्थनीज की पढ़ें इंडिका, अमेजन महिलाओं को लें जान। घुड़सवारी,कौशल,साहस, कितना था यह लें पहचान। चाणक्य का अर्थशास्त्र, देता हमको है ज्ञान। महिला तीरंदाज की टुकड़ी , नृप रक्षा में देतीं जान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
वेदों की यदि हम मानें तो, कट जाता था युद्ध में टांँग। अश्वनी कुमारों से वीरमूर्ति , लोहे के टांँग की करती मांँग। प्रभु राम के दूत पवनसुत, परीक्षार्थी सुरसा को लो जान। जब तक वह समर्थ ना होती, परीक्षा क्यों देते हनुमान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
अति दुर्गम रावण का दुर्ग था, लंकिनी जिसकी रक्षा करती। उससे बचकर देव, दनुज, गंधर्व की भी ना थी चलती। कैकेई ने बचा लिया था, कौशल्यापति का प्राण। कील की जगह लगा दी अंँगुली, मनोकामना पूर्ति का पाई वरदान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
आओ मेरे भाई बहनों! महाभारत मैं तुम्हें दिखाऊँ। सुभद्रा, उत्तरा, प्रमिला, वीरांगनाओं का नाम बताऊँ। प्रमिला ने अर्जुन को हराया, गांडीवधारी का हुआ अपमान। वेदों की ऋषिकाएँ थीं, प्रतिमूर्ति त्याग- बलिदान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
नारी की गौरव गाथा को, मैं कितना बतलाऊंँ। सागर- स्याही कलम बनराय, फिर भी गुण लिख ना पाऊँ। देवत्व उदय के हित का भी, ये सदा रखती थीं ध्यान। यह अनुपम उपहार धरा पर , कर लो इनका सम्मान। युगों-युगों से नारी, देती आई बलिदान।
2- अहिल्याबाई होलकर
31 मई 1925 को, अहमदनगर हुआ था धन्य। चौढ़ी गांँव में जन्मी होल्कर, पूरा महाराष्ट्र किया था पुण्य।
नारी सब कुछ कर सकती है, होलकर ने यह दिया प्रमाण। विपदाओं का हंँस की सामना, तोड़ सका ना कोई त्राण।
महाराष्ट्र की नटखट बाला, बड़ी विदुषी और समझदार। इन्हीं गुणों के वशीभूत हो, खंडेराव ने कर लिया था व्याह।
सुत व सुता दोनों ही जाईं, जीवन सुख -समृद्धि से पूर्ण। खंडेराव ने प्राण तजे तब, विपदाएंँ आईं भरपूर।
राज-काज तज बनूँ तपस्विनी, अहिल्या ने कर लिया विचार। ससुर मल्हार दिए राज-दुहाई, निर्णय बदलीँ ना कीं इंतज़ार।
देवी रूप भारत पूरा पूजे, इंदौर शहर गाए गुणगान। भाद्र -कृष्ण की चतुर्दशी को, मने अहिल्योत्सव लें जान।
तमस मिटा प्रकाश फैलाईं, परमार्थ हित ही दे दीं जान। राज्य ,वंश हित सब न्योछावर, हंँसते-हंँसते निकले प्राण।
13 अगस्त 1945, कालगति चुपके से आई। 70 वर्ष आयु थी इनकी, दुनिया से हो गई विदाई।
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
02-Feb-2024 04:20 PM
👏👌
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Mohammed urooj khan
01-Feb-2024 11:21 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
01-Feb-2024 12:26 PM
Nice
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Sadhana Shahi
01-Feb-2024 01:30 PM
thanks 🙏
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